Wednesday, July 25, 2012

यदा-कदा: सावण सूखो क्यूँ !

यदा-कदा: सावण सूखो क्यूँ !: इबकाळ रामजी न जाण के सूझी, क बरसण क दिनां मं च्यारूँ कान्या तावड़ की  बळबळती सिगड़ी सिलागायाँ बठ्यो है | जठे देखो बठे ई लोग-लुगावड़ियां में ...

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